PDA की आवाज बन, अगड़ों का साथ ले आगे बढ़ेगी सपा, घोसी उपचुनाव के प्रयोग होंगे INDIA की रणनीति का अहम पार्ट

PDA की आवाज बन, अगड़ों का साथ ले आगे बढ़ेगी सपा, घोसी उपचुनाव के प्रयोग होंगे INDIA की रणनीति का अहम पार्ट

सपा ने घोसी में न सिर्फ क्षत्रिय समाज का प्रत्याशी दिया, जो स्थानीय होने के नाते मतदाताओं के बीच जाना-पहचाना चेहरा था, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान भी पीडीए का राग नहीं अलापा। स्थानीय मुद्दों, दारा सिंह के दलबदल, आम मतदाताओं से उनकी दूरी और सरकार के कामकाज पर अपने नजरिये पर ही अखिलेश समेत सभी प्रमुख नेताओं ने खुद को केंद्रित रखा।

घोसी उपचुनाव ने जश्न के साथ सपा को नए सिरे से रणनीति तय करने का मौका दिया है। माना जा रहा है कि सपा पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक यानी पीडीए के मुद्दे तो प्रमुखता से उठाएगी, साथ ही अगड़ों को साथ लेने में भी कसर नहीं छोड़ेगी। सपा मुखिया अखिलेश यादव घोसी के इस सबक के मुताबिक आगे की रणनीति तय करेंगे।

रामपुर का गढ़ गंवाने के बाद सपा नेतृत्व ने राजनीतिक रणनीति के लिहाज से फूंक-फूंककर कदम आगे बढ़ाने शुरू किए। अखिलेश ने घोसी में टिकट फाइनल करने से पहले मऊ और आजमगढ़ के प्रमुख नेताओं व कार्यकर्ताओं को पार्टी कार्यालय पर बुलाया था। साथ ही टिकट के दोनों दावेदार सुधाकर सिंह और रामजतन राजभर भी उसी दिन पार्टी मुख्यालय पर आए थे।

अखिलेश ने पहले हॉल में कार्यकर्ताओं के साथ मंथन किया। फिर सुधाकर व रामजतन और उनके प्रमुख समर्थकों को अपने साथ अलग कमरे में बैठाया। गुणा-गणित ऐसे समझाया कि सर्वसम्मति से सुधाकर का नाम तय हो गया, जिसकी सूचना कुछ ही मिनटों के बाद पार्टी ने आधिकारिक तौर से सार्वजनिक कर दी।

जिस तरह से टिकट देने से पहले क्षेत्र के लोगों से रायशुमारी की गई, उसने एक तरह से विजय की नींव रख दी। हालांकि, बताते हैं कि अखिलेश अपने चाचा शिवपाल सिंह के साथ वहां के समीकरणों पर होमवर्क पहले ही कर चुके थे।

खास रणनीति के साथ जंग में उतरे
समाजवादी खास रणनीति के साथ जंग में उतरे। उनके समर्थक मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में होना सुनिश्चित हो, इसके लिए एक टीम लगा दी गई। सपा मुख्यालय से घोसी के कार्यकर्ताओं और प्रमुख नेताओं को फोन करके चुनाव में जुटने के लिए प्रेरित करने के लिए भी एक टीम लगाई गई, जिसकी जिम्मेदारी मुख्य रूप से सपा नेतृत्व के भरोसेमंद व पूर्व राज्यसभा सांसद अरविंद सिंह को सौंपी गई।

स्वामी प्रसाद का न जाना भी सोचा-समझा फैसला
सपा ने घोसी में न सिर्फ क्षत्रिय समाज का प्रत्याशी दिया, जो स्थानीय होने के नाते मतदाताओं के बीच जाना-पहचाना चेहरा था, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान भी पीडीए का राग नहीं अलापा। स्थानीय मुद्दों, दारा सिंह के दलबदल, आम मतदाताओं से उनकी दूरी और सरकार के कामकाज पर अपने नजरिये पर ही अखिलेश समेत सभी प्रमुख नेताओं ने खुद को केंद्रित रखा।

यह यूं ही नहीं था कि घोसी में प्रचार से सपा के फायर ब्रांड नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को दूर रखा गया। इसकी एक वजह यह भी मानी जाती है कि चुनाव का प्रबंधन संभाल रहे शिवपाल सिंह, मौर्य को लेकर ज्यादा सहज नहीं रहते। दूसरे, सपा नेतृत्व अच्छी तरह से समझ गया था कि स्वामी प्रसाद के जाने का मतलब है कि चुनाव ”सनातन बनाम गैर सनातन” हो जाएगा और यह समीकरण उसके मुफीद नहीं रहेगा।

सर्वसमाज को लेकर भावी रणनीति की ओर इशारा
पीडीए का नारा बुलंद करने वाले अखिलेश यादव ने भी जीत के बाद श्रेय न्यूनाधिक रूप में सर्वसमाज को देने से परहेज नहीं किया। कहा, यह उस अच्छी सोच वाले सर्वसमाज और पीडीए के साथ आने की जीत है, जो समाज के हर वर्ग को बराबर का हक देकर हर किसी की तरक्की को मकसद मानकर चलती है। यह सपा की भावी रणनीति की ओर इशारा कर रही है।

यहां करना होगा पुनर्विचार
सपा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए जारी घोषणापत्र में कहा था कि देश के 10 फीसदी सामान्य वर्ग के लोग 60 फीसदी राष्ट्रीय संपत्ति पर काबिज हैं। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. संजय गुप्ता मानते हैं कि इसे लेकर भाजपा को सामान्य वर्ग को सपा के खिलाफ खड़ा करने में मदद मिली। उनके बीच यह संदेश गया कि सपा सर्वसमाज की बात नहीं करती है और परिणाम सपा के विपरीत आए। जबकि, वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को सर्वसमाज का समर्थन मिला था, जिसके दम पर वो सत्ता तक पहुंची।

नाम में शामिल समावेशी शब्द को करना होगा चरितार्थ
यूपी के राजनीतिक मामलों के जानकार प्रो. रवि श्रीवास्तव भी मानते हैं कि घोसी में इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में सपा के सुधाकर सिंह की ऐतिहासिक जीत के कारणों पर मंथन की सबसे ज्यादा जरूरत एकसूत्र में बंधने का प्रयास कर रहे विपक्षी दलों के लिए ही है। घोसी की जीत से प्रेरणा ले अति उत्साह के साथ आगे बढ़े तो भाजपा विरोधी धारा के लिए यह घातक साबित हो सकता है।

प्रो. श्रीवास्तव कहते हैं कि घोसी में सपा प्रत्याशी की ऐतिहासिक जीत बिना सर्वसमाज के समर्थन के मुमकिन नहीं थी। इसलिए जिस तरह से इंडिया गठबंधन के पूरे नाम में समावेशी शब्द है, उसे चरितार्थ करते हुए सर्व समाज को लेकर आगे बढ़ना होगा, तभी लोकसभा चुनाव में वे अपने लिए स्थान बना पाएंगे।

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