सवाल समाज, प्रशासन, शासक और सता पर विराजमान महानायकों से ?
- आखिर कब तक महिलाओं और नाबालिग बच्चियों को निर्भया के रूप में अपनी जिंदगी को अलविदा कहना होगा ,
- आखिर कब तक किसी निर्भया के जाने के बाद उसे न्याय दिलाने के लिए हाथों में मोमबत्ती लेकर शहर की गलियों और चौराहों पर बैठना पड़ेगा ?,
- आखिर कब तक महिलाओं को ऑफिस या कहीं और से आते समय लेट होने पर डर और चिन्ता के कारण सार्वजनिक वाहन में भी सोच समझ और देख कर बैठना होगा ? आखिर ये सिलसिला कब थमेगा ? है क्या कोई जवाब सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों के पास ?
समाज में होने वाले सभी प्रकार के अत्याचारों पर सख्त से सख्त कदम उठाने के प्रावधान है पर उसके बावजूद सता पर हमारे ही द्वारा विराजमान कराए गए महानायक और प्रशासनिक अधिकारी हाथ पर हाथ रख आंखे और मुंह बंद कर बैठे रहते है।
क्योंकि हमारे बीच जागरुकता की कमी हैं और इसी वजह से हमे हमारे अधिकार नहीं मिल पाते। जो हमे संविधान में मिले हुए हैं मौलिक हो या मानव अधिकार ।
अपने अधिकारों को पाने के लिए और सता पर विराजमान महानायको, आईएएस/ धानिक/ सरकारी / प्रशासनिक अधिकारी द्वारा जो हमारे अधिकार दिलाने में अहम भूमिका निभाई जानी चाहिए पर नही निभाई जा रही,, ऐसे हनन को रोकने के लिए आप आगे आए साथ जुडें और अपने जीवन में मिले अधिकारो जैसे न्याय का अधिकार,
समानता का अधिकार,
जीवन का अधिकार, इत्यादि सभी कामो को पाने के लिए एकजुट होकर मानवता की सेवा करे इस मुहिम के एक मुख्य किरदार और हिस्सेदार बने, आपके द्वारा आपका अपना दायित्व निभाने से हम हम सभी अपने अधिकारों को पाने में कामयाब हो जाएंगे।
जनहित में जारी,
संजय बाटला