थैलेसीमिया के मरीजों को बड़ी राहत, 45 की जगह आठ मिनट में पता चल रहा दिल में कितना आयरन

थैलेसीमिया के मरीजों को बड़ी राहत, 45 की जगह आठ मिनट में पता चल रहा दिल में कितना आयरन

थैलेसीमिया के मरीजों को हमेशा खून चढ़ाने की जरूरत होती है। इस दौरान आयरन की अधिकता हो जाती है, जो दिल के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में जमा हो जाती है। इसका पता लगाने के लिए पहले हृदय की सामान्य एमआरआइ होती थी जिसमें पहले करीब 45 मिनट समय लगता था। थैलेसीमिया के मरीजों के दिल में जमा होने वाले आयरन का पता महज आठ मिनट में चल जाता है। एम्स ने इसकी जांच के लिए रैपिड एमआरआई तकनीक की शुरूआत की है। एम्स में हर दिन इस तकनीक की मदद से करीब 50 मरीजों की जांच होती है। दरअसल थैलेसीमिया के मरीजों को हमेशा खून चढ़ाने की जरूरत होती है। इस दौरान आयरन की अधिकता हो जाती है, जो दिल के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में जमा हो जाती है। इसका पता लगाने के लिए पहले हृदय की सामान्य एमआरआइ होती थी जिसमें करीब 45 मिनट समय लगता था। इसे देखते हुए एम्स दिल्ली ने सिर्फ आठ मिनट के समय में दिल की जांच करने वाली रैपिड एमआरआई तकनीक को शुरू किया। इसकी मदद से सटीक जानकारी मिल रही है। यूके में इस तकनीक ने थैलेसीमिया से मौत के 80 फीसदी मामले कम किए। बुधवार को एम्स में प्रेस वार्ता के दौरान कार्डियोवैस्कुलर रेडियोलाजी की विभागाध्यक्ष डा. प्रिया जागिया ने कहा कि इस तकनीक को अपनाकर यूनाइटेड किंगडम (यूके) थैलेसीमिया मरीजों की मौतें 80 प्रतिशत कम करने में कामयाब रहा है। इस वजह से यूके में थैलेसीमिया मरीजों की औसत उम्र 40 वर्ष होती है जबकि भारत में थैलेसीमिया मरीजों की औसत उम्र 25 वर्ष होती है। उन्होंने कहा कि थैलेसीमिया और स्किल सेल एनीमिया से पीड़ित बच्चों को बार-बार खून चढ़ाए जाने से शरीर में आयरल लोड बढ़ जाता है, जो लिवर, हृदय व पैंक्रियाज सहित अन्य अंगों पर प्रभाव डालता है। ऐसे में देखा गया है कि थैलेसीमिया के 50 से 70 फीसदी मरीजों का हृदय खराब होने या हृदय में आयरन जमा होने से मौत हो जाती है। इससे बचाव के लिए मरीजों के शरीर से आयरन लोड को कम करना होता है। नई एमआरआई तकनीक सिर्फ आठ मिनट में जांच कर नतीजे बता देगी।

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